~ यहीं झील के उस पार ~

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हर रोज़ आती है वो मुझसे मिलने,
यहीं झील के उस पार,
पानी में खुद का अक्स देख के ज़रा शर्मा सी जाती है,
हर बार पूछती है कि कैसी लगती हूं आज?
मुस्कुराते हुए मेरा जवाब एक ही होता है, बेहद खूबसूरत ,
सुन कर बहुत हसती है, फिर साथ बैठ जाती है,
सब भूल जाता हूं इस हसी में ,
ये भी की वो बस एक “शाम” ही तो है, कोई हमराह नहीं,
उसे ना रोक सकता हूं, ना थाम सकता हूं, बस देख सकता हूं जाते हुए,
इस इंतजार में की वो कल आएगी फिर वहीं,
झील के उस पार ।
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